ओशो की बात
प्रत्येक व्यक्ति के भीतर घटने वाली दो घटनाएं हैं।
जब तक मन में संदेह है, हिरण्यकश्यप मौजूद है। तब तक अपने भीतर उठते
श्रद्धा के अंकुरों को तुम पहाड़ों से गिराओगे, पत्थरों से दबाओगे,
पानी में डुबाओगे, आग में जलाओगे- लेकिन तुम जला न पाओगे।
जहां संदेह के राजपथ हैं; वहां भीड़ साथ है।
जहां श्रद्धा की पगडंडियां हैं; वहां तुम एकदम अकेले हो जाते हो,
एकाकी। संदेह की क्षमता सिर्फ विध्वंस की है, सृजन की नहीं है।
संदेह मिटा सकता है, बना नहीं सकता। संदेह के पास सृजनात्मक
ऊर्जा नहीं है।
आस्तिकता और श्रद्धा कितनी ही छोटी क्यों न हो,
शक्तिशाली होती है।
जब तक मन में संदेह है, हिरण्यकश्यप मौजूद है। तब तक अपने भीतर उठते
श्रद्धा के अंकुरों को तुम पहाड़ों से गिराओगे, पत्थरों से दबाओगे,
पानी में डुबाओगे, आग में जलाओगे- लेकिन तुम जला न पाओगे।
जहां संदेह के राजपथ हैं; वहां भीड़ साथ है।
जहां श्रद्धा की पगडंडियां हैं; वहां तुम एकदम अकेले हो जाते हो,
एकाकी। संदेह की क्षमता सिर्फ विध्वंस की है, सृजन की नहीं है।
संदेह मिटा सकता है, बना नहीं सकता। संदेह के पास सृजनात्मक
ऊर्जा नहीं है।
आस्तिकता और श्रद्धा कितनी ही छोटी क्यों न हो,
शक्तिशाली होती है।